Monday 24 October 2022

लंबा जीवन जीना है तो अभी संभल जाए


हिन्दू शास्त्रों और आयुर्वेद में भोजन के संबंध में बहुत कुछ लिखा है। जैसे किस वार को क्या क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, किस तिथि को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं आदि। उसी तरह किस माह में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, ये भी बताया गया है। दरअसल, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। कुछ लोग इन वैज्ञानिक तथ्यों को परंपरा से जोड़कर भी देखते हैं। आगे जानिए किस हिंदू माह में क्या खाने से बचना चाहिए और क्या खाना चाहिए…


किस माह में क्या न खाएं…

चौते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।

सावन साग, भादो मही, कुवांर करेला, कार्तिक दही।।

अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना।

जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।।


किस माह में क्या खाएं…

चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल।

कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल।

माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।।




1. चैत्र माह

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार मार्च-अप्रैल के बीच आता है। हिन्दू कैलेंडर के यह प्रथम माह है। इस माह से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होती है। चैत्र माह में गुड़ खाना मना है। चना खा सकते हैं।


2. वैशाख



यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार अप्रैल-मई के बीच आता है। वैशाख माह में नया तेल लगाना मना है। इस माह में तेल व तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बेल खा सकते हैं।


3. ज्येष्ठ

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार मई-जून के बीच आता है। जेठ माह में दोपहर में चलना खेलना मना है। इन महीनों में गर्मी का प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घूमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अधिक से अधिक शयन करना चाहिए। इस माह बेल खाना चाहिए।


4. आषाढ़

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार जून-जुलाई के बीच आता है। आषाढ़ माह में पका बेल खाना मना है। इस माह में हरी सब्जियों के सेवन से भी बचें। लेकिन इस माह में खूब खेल खेलना चाहिए। कसरत करना चाहिए।


5. श्रावण (सावन)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार जुलाई-अगस्त के बीच आता है। सावन माह में साग खाना मना है। साग अर्थात हरी पत्तेदार सब्जियां और दूध व दूध से बनी चीजों को भी खाने से मना किया गया है। इस माह में हर्रे खाना चाहिए जिसे हरिद्रा या हरडा कहते हैं।


6. भाद्रपद (भादौ)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार अगस्त-सितम्बर के बीच आता है। भादौ माह में दही खाना मना है। इन दो महीनों में छाछ, दही और इससे बनी चीजें नहीं खाना चाहिए। भादौ में तिल का उपयोग करना चाहिए।


7. आश्विन (क्वार)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार सितम्बर-अक्टूबर के बीच आता है। क्वार माह में करेला खाना मना है। इस माह में नित्य गुड़ खाना चाहिए।


8. कार्तिक

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार अक्टूबर-नवम्बर के बीच आता है। कार्तिक माह में बैंगन, दही और जीरा बिल्कुल भी नहीं खाना मना है। इस माह में मूली खाना चाहिए।


9. मार्गशीर्ष (अगहन)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार नवम्बर-दिसंबर के बीच आता है। इस समय में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। तेल का उपयोग कर सकते हैं।


10. पौष (पूस)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार दिसंबर-जनवरी के बीच आता है। दूध पी सकते हैं लेकिन धनिया नहीं खाना चाहिए क्योंकि धनिए की प्रवृति ठंडी मानी गई है और सामान्यत: इस मौसम में बहुत ठंड होती है। इस मौसम में दूध पीना चाहिए।


11. माघ

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार जनवरी-फरवरी के बीच आता है। माघ माह में मूली और धनिया खाना मना है। मिश्री नहीं खाना चाहिए। इस माह में घी-खिचड़ी खाना चाहिए।


12. फाल्गुन (फागुन)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार फरवरी-मार्च के बीच आता है। इस माह में सुबह जल्दी उठना चाहिए। इस माह में चना खाना मना है 

Sunday 23 October 2022

कफ वाली खांसी व सूखी खांसी में रामबाण इलाज

कफ वाली खांसी 

सूखी खांसी में उपयोगी

1 ग्राम दालचीनी और 1 ग्राम लोंग और एक टुकड़ा अदरक का इसका एक गिलास पानी डालकर काढ़ा बनाओ जब आधा गिलास बच जाए तो उसको छानकर उसमें दो बूंद अमृतधारा की मिलाकर पी जाओ ना तो तुम्हारा गला जाम होगा ना बलगम बनेगा ना खांसी आएगी  और अगर बलगम पहले से खूब ज्यादा बना है तो तुम को उल्टी हो जाएगी और सारा बलगम निकल जाएगा उल्टी भी हर व्यक्ति को नहीं होती है इसमें जो बताया गया है 


दालचीनी लोंग और अदरक तीन ही चीजें होनी चाहिए अपने दिमाग से और इसमें काली मिर्च ऐड मत  कर लेना नहीं  तो इसके गुण धर्म बदल जाएंगे फिर जिस काम में आपको चाहिए वह रिजल्ट नहीं मिलेगा
कुछ लोग यहां गिलोय भी ऐड कर लेते हैं तो वह सारा काम गड़बड़ हो जाता है गिलोय तो ऐसी चीज है अगर बुखार हो जाए तो उसको दो-तीन दिन लेकर फिर बंद कर दे

अगर  स्वस्थ आदमी तो बिना मतलब में अगर गिलोय पिएगा तो फिर उसका परिणाम भी उसको गंभीर होगा क्योंकि गिलोय बदन में जाती है अपना काम करती है पलेटेस्ट बढ़ाती है और जब उसको सब कुछ बड़ा हुआ मिल जाता है तो फिर डाउन करना चालू करती है 

इसलिए गिलोय को आवश्यकता पड़ने पर ही कभी-कभी इनका सेवन करना चाहिए ऐसा नहीं कि रोज इसके काडे कि पीछे लग जाए मानते हैं
इसलिए पूरी जानकारी भी जरूरी है रखना जो पढ़ा जाता है किताबों का वैसा नहीं होता है 


जैसे नीम के कोमल पत्ते चैत्र के महीने के अंदर लोग खाते हैं उसको 10 से 12 दिन ही खाना पड़ता है उसके बाद बंद करना पड़ता है पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दो दो-तीन दिन महीने तक चालू रखते हैं

जो कुंवारा लड़का होता है वह दो ढाई महीने खा लेता है और ध्यान नहीं देता है और जब शादी होती है तो उसके वीर्य से शुक्राणुओं यानी सीमन काउंट बहुत कम हो जाते हैं और संतान प्राप्ति में भी उसको दिक्कत आती है और उसको इस चीज का पता ही नहीं रहता है यह कम केसे हुआ तो बहुत सी चीजें तजुर्बे की होती है 

दोस्तों ऐसा ही नहीं कि अपना दिमाग मे कर कुछ भी चीज कहीं भी पढ़ ली और उसको ऐसे कर लो 

छोटी सी जानकारी थी जो गुरु लोग और लोगों से मिली हुई थी प्रैक्टिकल करने पर इन पर फिर सच्चाई पाई तो आप लोगों से शेयर कर दिया जो मैंने काडा बताया है अमृतधारा के साथ उसको ले लो उसका शानदार काम है सप्ताह में दो तीन बार ले लो खूब है चिंता मुक्त और भय मुक्त हो जाओ

Saturday 22 October 2022

सर्दियों में स्वस्थ रखे आयुर्वेद

सर्दियों में स्वस्थ रखे आयुर्वेद


  • प्रायः शरद के प्रारंभ में पित्त प्रकुपित हो जाया करता है। अतः सौम्य एवं पित्त शामक विरेचन द्वारा बड़े दोषों को शांत कर देना चाहिए। 
  • समानभाग में निशोध, धमासा, नागरमोथा, श्वेत चंदन और मुलेठी को कूट-पीसकर मनुक्का में मिलाकर गोलियाँ बना लें | 
  • दो गोली रात को सोते समय लेने से शरीर में हल्कापन महसूस होता है। इस औषधि से ब़ूढे, बच्चे सभी अपना पेट साफ कर सकते हैं।


  • आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर छोड़कर उषापान करना चाहिए। महर्षि वाग्भट्ट के अनुसार शरद में जल अमृत के समान हो जाता है। 
  • मल-मूत्र परित्याग आदि आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर व्यायाम करना चाहिए। प्रातःकाल का भ्रमण स्वास्थ्यवर्द्धक है। व्यायाम के पश्चात तेल मालिश करना चाहिए। जाड़े में नहाने के लिए गरम जल का उपयोग करना चाहिए।



  • आयुर्वेद की जड़ी-बूटियों का वाष्प स्नान बहुत फायदेमंद रहता है। जो हमेशा ठंडे पानी का उपयोग नहाने में करते हैं, उन्हें ठंडे पानी से ही नहाना चाहिए।
  • जाड़ों में रात बड़ी होने से सुबह जल्दी ही भूख लग जाती है। सुबह का नाश्ता तंदुरुस्ती के लिए ज्यादा फायदेमंद है। नाश्ते में हलुआ, शुद्ध घी से बनी जलेबी,लड्‍डू, सूखे मेवे, दूध आदि पौष्टिक एवं गरिष्ठ पदार्थों का सेवन करना चाहिए।


  • शकर की अपेक्षा गुड़ सर्दी में अधिक गुणकारी होता है। शहद का उपयोग भी स्वास्थ्यवर्द्धक रहता है। जाड़े में ऊष्णता के लिए शुद्ध घी का सेवन करना चाहिए। मूँग, तुवर, उड़द की दालों का उपयोग अच्छा रहता है। दाल छिलके वाली एवं बिना पॉलिश की होना चाहिए।


  • अचार पाचनकर्ता है, लेकिन अधिक खाने से यह नुकसान करता है। बीमारी में केवल नींबू का अचार रोग के अनुसार दिया जा सकता है।
  • सूखे मेवे का सेवन भी लाभदायक रहता है। इन्हें उबालना नहीं चाहिए। मेवों की मिठाई गरिष्ठ एवं हानिकारक होती है, जबकि सभी मेवे स्वादिष्ट रुचिकर, तृप्तिकर होते हैं। सर्दी में,बादाम, पिस्ता, काजू, छुआरे, पिंड खजूर, अंजीर का उपयोग करना चाहिए


  • शरद में जुकाम और इन्फलूएंजा की शिकायत हो जाया करती है। ऐसी हालत में दालचीनी का तेल मिश्री के साथ थोड़ा खाने से तथा रुमाल पर कुछ बूँदें छिड़ककर सूँघने से लाभ मिलता है।

Thursday 6 October 2022

Use of Palash (पलाश ) in Ayurveda Medicine

पलाश 

पलाश फेबेसी परिवार का पेड़ है, पलाश के फूल बेहद खुबसूरत लगते है, इनका आकर्षण रंग अपनी और ध्यान खीच लेता है | पलाश को आमतौर पर जंगल की ज्वाला (Flame of the forest) या ज्वाला वृक्ष (Flame Tree) भी कहा जाता है | 

यह दो प्रकार का होता है | एक तो लाल फूलो वाला और दूसरा सफ़ेद फूलो वाला, लाल फूलो वाला पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया मोनोस्पर्मा" (Butea Monosperma) है | सफ़ेद फूलो वाले पलाश का वैज्ञानिक नाम "ब्यूटिया पार्विफ़्लोरा" ( Butea Parviflora) है | यह भारत में आसानी से किसी भी स्थान पर मिल जाता है | 

इसके फूलो को टेसू के फूल के नाम से भी जाना जाता है, पलाश के फूल के अलावा इसकी पत्तिया, छाल, बीच और मूल का उपयोग भी विभिन्न दवाइयों के रूप में किया जाता है, जिसका उपयोग त्रिदोष वात और कफ़ के उपचार करने के लिए किया जाता है |  

इसमे रोगाणुओं और एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी फंगल, एंटी इन्फ्लेमेटरी, एपेटाइजर, एंटी डायबिटीक गुण पाए जाते है | आयुर्वेदाचार्यो के अनुसार यह चर्म रोग, ज्वर, मुत्रावरोध, गर्भाधान रोकने, नेत्रज्योति बढाने, जोड़ो के दर्द, डायरिया, लीवर और अन्य समस्याओ के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है |  


पलाश के फूलो से बने रंग की उपयोगिता  



  • भारत में प्राचीन काल से होली खलने के लिए पलाश के फूलो से बने रंग का प्रयोग होता आया है | इसके पीछे विज्ञान छुपा हुआ है, पलाश के फूलो का रंग शरीर की अत्यधिक गर्मी को शांत करता है | 
  • त्वचा को स्वच्छ व रक्त को शुद्ध करके अनेक संक्रामक रोगों से हमारी सुरक्षा करता है |
  • बाजार में बहुत से हानिकारक केमिकल युक्त रंग उपलब्ध है, उनसे हमारे शरीर और त्वचा को बहुत नुकसान होता है साथ ही साथ हमारी आँखों के लिए भी हानिकारक होते है, यह त्वचा सम्बन्धी रोगों को उत्पन्न करते है इसलिए प्राकृतिक रंगों को ही उपयोग किया जाना चाहिए | 


पलाश के पत्तो  से बने दोना - पत्तल  की उपयोगिता  



  • पलाश के पत्तो से बने दोना- पत्तल में एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते है | इसलिए इनका प्रयोग भोजन रख के करने में आता है  | 
  • इससे बनी दोना - पत्तलों में भोजन करने से सोना - चांदी के पात्र में भोजन करने के समान लाभ मिलता है और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है | 

यदि आप चाहते है कि आपको अपनी बीमारी के लिए बार - बार डॉक्टर के चक्कर न लगाना पड़े, तो पलाश के पेड़ को अपने जीवन में जरुर शामिल करे | 


पलाश के फूल का औषधीय गुण 

  • कुष्ठ:- आयुर्वेद की माने तो पलाश के फूल में एंटी लेप्रोटिक प्रभाव होता है | जो की कुष्ठ रोग से निजात दिलाने में मददगार हो सकता है |
  • बवासीर:- पलाश के सूखे हुए फूल के पाउडर में कई खनिज तत्व पाए जाते है यह बवासीर के इलाज में काफी हद तक सहायक है |
  • मासिक धर्म:- महिलाओं के मासिक धर्म की अनियमितता में भी इसका उपयोग किया जाता है |
  • मूत्र विकार:- मूत्र  सम्बन्धी विकार में पलाश के फूलो का उपयोग किया जाता है | 
  •  रतोंधी:- रतोंधी में पलाश के फूलो का उपयोग किये जाने पर लाभ मिलता है | 
  • ज्वर:- पलाश के फूल ज्वर में उपयोग किये जाते है | 
  • सुजन में:- पलाश के फूल में मेथेनोलिक अर्क होता है, इस अर्क में एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण पाया जाता है, ये घात के कारण होने वाली सुजन को कम करने में सहायक होता है |
  • योन शक्ति:- पलाश के फूल योन शक्ति और उससे जुडी समस्याओं में लाभकारी हो सकता है 
  • बालो के रोग:- पलाश के फूलो का इस्तेमाल बालो के लिए लाभकारी माना जाता है | जो बालो के रोग में मोजूद मुक्त कणों को दूर करने के साथ बालो को झड़ने से रोकता है |
  •  कील-मुहासे:- फूलो के उपयोग से चेहरे के दाग व किल मुहासे मिट जाते है, इससे त्वचा की कांति व सोंदर्यता बढती है |
  • शक्ति:- फूलो के उपयोग से शरीर को शक्ति मिलती है 

पलाश की छाल का औषधीय गुण

  • रक्त शुद्धि:- पलाश की छाल ब्लड प्यूरीफायर की तरह कम करती है | खून साफ कर कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से बचाव करती है |
  • थाइराइड:- पलाश की छाल थाइराइड हार्मोन्स को नियंत्रित करने का गुण भी होता है |
  • त्वचा रोग:- पलाश की छाल में एंटी फंगल गुण पाए जाते है, जो संक्रमण फेलाने वाले फंगस को खत्म करने में सहायक है | 
  • सर्दी-ख़ासी:- पलाश की छाल का काढ़ा सर्दी ख़ासी में निजात दिलाने में मददगार होता है | 
  • आंत्रवृद्धी (Hernia):-  आंत्रवृद्धी (Hernia) में छाल का उपयोग किया जाता है |
  • रक्तस्त्राव:- रक्तस्त्रावव ज्यादा होने पर छाल का काढ़ा उपयोग किया जाता है | 

पलाश के बीज का औषधीय गुण

  • पेट के कीड़े:-  पलाश के बीज का उपयोग पेट से जुडी समस्याओं में राहत दिलाने में मदद करता है | पलाश के बीज पेट के कीड़े का उपचार करने में भी सहायक हो सकते है | 
  • घाव:- घाव पर लगाने पर घाव भरने की प्रक्रिया तेज हो जाती है जिससे घाव जल्दी भर जाते है |
  
पलाश के पत्तो का औषधीय गुण

  • मधुमेह:- पलाश में एंटी हाइपरग्लेसेमिक गुण सबसे ज्यादा पाया जाता है, जो मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करता है |  
  • खराश:- गले की खराश के लिए और माउथवॉश के लिए इसका उपयोग किया जाता है | 
  • सफ़ेद पानी (leucorrhoea) :- महिलाओं में सफ़ेद पानी गिरने की शिकायत होने पर और जननांग भाग को  धोने के लिए इसका काढ़ा का उपयोग किया जाता है | 

पलाश के उपयोग में सावधानी 

  • गर्भवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाएं इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य ले |
  • अगर किसी बीमारी के लिए एलोपैथी दवा का सेवन कर रहे है तो पलाश का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरुर कर ले | 
  • सवेदनशील लोगो को पलाश के सेवन से एलर्जी की शिकायत हो सकती है | 
 पलाश की खुराक 
  • पलाश का उपयोग किस लिए किया जा रहा है, साथ ही खुराक व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य और अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है | तो उपयोग से पहले इसकी उचित खुराक के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य ले |

नारसिंह चूर्ण के बेमिसाल फायदे, पाये शेर जैसी ताकत | शरीर को बनाए वज्र के समान |

  नारसिंह चूर्ण के घटक द्रव्य ओर बनाने की विधि : शतावरी, गोखरू, छिलके निकाले हुए तिल और विदारीकन्द 64 -64 तोले वाराहीकन्द, गिलोय 1-1 स...