- शतावरी, गोखरू, छिलके निकाले हुए तिल और विदारीकन्द 64 -64 तोले
- वाराहीकन्द, गिलोय 1-1 सेर
- शुद्ध भिलावे 128 तोले,
- चित्रकमूल की छाल आध सेर,
- त्रिकटु 32 तोले,
- मिश्री 3 सेर,
- शहद 1 सेर
- घृत ७० तोले लेवें
- इनमें से सूखी औषधियों को कूट छान महीन चूर्ण कर मिश्री मिलावें। पश्चात् घृत और फिर शहद मिलावें। बाद में अमृतबान में भरें।
वक्तव्य- हम घी और शहद नहीं मिलाते। सेवन के समय में 6 माशे घी और 1 तोला शहद मिला लेना विशेष हितावह माना रसायन और बाजीकरण गुण के लिये चूर्ण बनाना हो तो गिलोय के स्थान में गिलोयसत्व, भिलावें के स्थान में भिलावें का मगज (गोडम्बी) और त्रिकटु के स्थान में त्रिजात लेना विशेष लाभदायक है।
सेवन की मात्रा व अनुपान
मात्रा-2 - 4 माशे चूर्ण या घी शहद मिला हो तो 6 माशे से 1 तोला, दिन में 2 बार दूध के साथ लेवें।
नारसिंह चूर्ण के गुण व उपयोग
इस चूर्ण को 1 मास तक सेवन करने से क्षय, कास, वृद्धावस्था की निर्बलता, गंज, प्लीहा, अर्श, पाण्डु, हलीमक, श्वास, कास, पीनस, भगन्दर, मूत्रकृच्छ्, अश्मरी, कुष्ठ, उदर रोग, प्रमेह, वातरोग, पित्तरोग, कफरोग, द्वन्द्वज रोग, त्रिदोषज रोग, अर्श ये रोग दूर होकर पुरुष तेज वाला, पराक्रमी, वेग और गम्भीर स्वर वाला बन जाता है।
यह उत्तम वाजीकारक और वीर्य वर्धक रसायन है| कामशक्ति को बढाने के लिए यह बहुत ही सस्ती और सुलभ दवा है | सामान्य यौन कमजोरियां होने पर इसका उपयोग किया जा सकता है |
इसके फायदे :-
बल एवं वीर्यवर्धक चूर्ण है |
शरीर में आयी कमजोरी को दूर करने के लिए उपयोगी है |
इसके सेवन से वीर्य गाढ़ा होता है |
यह विर्यवाहिनी नाड़ी को पुष्ट करता है |
कामोत्तेजना कम होने पर इसका सेवन करना बहुत फायदेमंद है |
यह रस रक्तादि धातुओं की वृद्धि कर शरीर को बलवान बनाता है |
किसी रोग के बाद आई कमजोरी में इसे लिया जा सकता है |
इसके सेवन से पुरुष में कामशक्ति का संचार होता है |
चूर्ण परिकल्पना की औषधियां बनाने में बहुत ही आसान और गुणकारी होती हैं | इसलिए आयुर्वेद में इनका प्रचलन अधिक है | नारसिंह चूर्ण एक वाजीकारक औषधि है जिसका उपयोग बल एवं वीर्य की वृद्धि के लिए किया जाता है | इस चूर्ण को आप आसानी से घर पर बना सकते हैं |
No comments:
Post a Comment